जब भी आप किसी कंपनी में निवेश करने के बारे में सोचते हैं, तो सिर्फ उसके प्रॉफिट को देखकर निर्णय लेना उचित नहीं होता। कंपनी का कर्ज कितना है और वह उसे कैसे संभाल रही है — यह जानना बेहद ज़रूरी होता है। इसी मूल्यांकन का एक प्रमुख टूल है Debt to Equity Ratio (D/E Ratio)।
यह संकेतक बताता है कि कंपनी की वित्तीय संरचना कितनी मजबूत या जोखिमभरी है।
इस ब्लॉग में हम विस्तार से समझेंगे
Debt to Equity Ratio क्या होता है?
Debt to Equity Ratio एक फाइनेंशियल संकेतक है जो बताता है कि कंपनी की कितनी फंडिंग कर्ज (Debt) से हुई है और कितनी फंडिंग शेयरधारकों के पैसे (Equity) से।

आसान भाषा में:
यह Ratio यह दर्शाता है कि कंपनी ने अपने बिजनेस को चलाने के लिए कितनी पूंजी कर्ज के जरिए जुटाई है और कितनी पूंजी शेयरधारकों के निवेश से आई है।
Debt to Equity Ratio = कुल कर्ज / कुल शेयरधारकों की पूंजी
Debt to Equity Ratio कैसे निकाला जाता है?
फॉर्मूला:
D/E Ratio = Total Debt / Shareholder’s Equity
जहाँ:
• Total Debt = Short-term debt + Long-term debt
• Shareholder’s Equity = Equity Share Capital + Reserves & Surplus
उदाहरण:
मान लीजिए किसी कंपनी के पास:
• Total Debt = ₹100 करोड़
• Shareholder’s Equity = ₹200 करोड़
D/E Ratio = ₹100 करोड़ / ₹200 करोड़ = 0.5
इसका मतलब है कि कंपनी के पास ₹1 की इक्विटी पर ₹0.50 का कर्ज है।
Debt to Equity Ratio क्यों होता है ज़रूरी?
- कंपनी के रिस्क को मापने के लिए
ज्यादा कर्ज = ज्यादा ब्याज देने की ज़रूरत = ज्यादा वित्तीय जोखिम
- फाइनेंशियल स्ट्रक्चर को समझने के लिए
कंपनी अपनी जरूरत की पूंजी कर्ज से ला रही है या इक्विटी से — यह जानना निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण होता है।
- लोन लेने की क्षमता देखने के लिए
बैंकों और फाइनेंसरों के लिए D/E Ratio एक पैमाना होता है कि कंपनी को और कर्ज देना सुरक्षित है या नहीं।
High D/E Ratio के नुकसान
1. कंपनी पर ज्यादा कर्ज का बोझ
2. ब्याज भुगतान में ज्यादा खर्च
3. मंदी में ज्यादा जोखिम
4. निवेशकों का भरोसा घट सकता है
Low D/E Ratio के फायदे
1. कंपनी पर कर्ज का दबाव कम
2. ब्याज लागत कम
3. संकट के समय कंपनी की स्थिरता बेहतर
4. लॉन्ग टर्म में स्थिर ग्रोथ की संभावना
D/E Ratio का विश्लेषण कैसे करें?
- इंडस्ट्री बेंचमार्क के साथ तुलना करें
एक ही सेक्टर की दूसरी कंपनियों से तुलना करें।
- कंपनी के पिछले 5 वर्षों का ट्रेंड देखें
क्या D/E Ratio बढ़ रहा है या घट रहा है?
- Interest Coverage Ratio के साथ मिलाकर देखें
कंपनी अपने कर्ज पर कितना ब्याज आसानी से चुका पा रही है?
Debt to Equity Ratio और निवेश
कब निवेश करें?
• जब D/E Ratio इंडस्ट्री के औसत से कम हो
• कंपनी की आमदनी स्थिर हो
• ब्याज चुकाने की क्षमता अच्छी हो
• प्रबंधन कर्ज का सही उपयोग कर रहा हो
कब सतर्क रहें?
• जब D/E Ratio लगातार बढ़ रहा हो
• कंपनी का ऑपरेटिंग कैश फ्लो निगेटिव हो
• ब्याज खर्च Net Profit से ज्यादा हो
Debt to Equity Ratio की सीमाएं
1. Total Debt की परिभाषा अलग-अलग हो सकती है
कुछ कंपनियाँ केवल Long-term Debt को शामिल करती हैं।
2. Balance Sheet डेटा पुराने हो सकते हैं
कर्ज और इक्विटी में साल के अंदर बड़ा बदलाव हो सकता है।
3. सेक्टर के अनुसार तुलना जरूरी
Low D/E Ratio IT में अच्छा है, लेकिन Infra में नहीं।
उदाहरण: L&T का D/E Ratio विश्लेषण
मान लीजिए:
• Total Debt = ₹1,00,000 करोड़
• Shareholder’s Equity = ₹50,000 करोड़
D/E Ratio = ₹1,00,000 / ₹50,000 = 2.0
यह दिखाता है कि कंपनी ने ₹1 की Equity पर ₹2 का कर्ज लिया है। यह इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में आम बात है, लेकिन दूसरे सेक्टरों में यह खतरनाक हो सकता है।
निष्कर्ष
Debt to Equity Ratio निवेश के लिए एक जरूरी संकेतक है जो बताता है कि कंपनी कितनी कर्जदार है और अपने व्यवसाय को चलाने के लिए कितनी Equity का उपयोग कर रही है। इसका सही विश्लेषण आपको यह तय करने में मदद करता है कि कोई कंपनी फाइनेंशियली स्थिर है या जोखिमभरी।
याद रखने योग्य बातें:
• D/E Ratio = Total Debt / Shareholder’s Equity
• 0 – 1 Ratio = अच्छा संकेत (कम रिस्क)
• इंडस्ट्री के अनुसार तुलना जरूरी है
• High D/E = ज्यादा जोखिम, लेकिन संभावित ग्रोथ भी
• Low D/E = कम रिस्क, पर स्लो ग्रोथ संभव
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