निवेश की दुनिया में अगर आप किसी कंपनी की परफॉर्मेंस को आंकना चाहते हैं, तो Return on Equity यानी ROE एक बेहद महत्वपूर्ण संकेतक है। यह दर्शाता है कि कंपनी अपने शेयरधारकों द्वारा लगाए गए पूंजी पर कितना रिटर्न दे रही है।
यदि आप एक लॉन्ग टर्म निवेशक हैं, तो ROE का विश्लेषण करके आप यह तय कर सकते हैं कि कोई कंपनी निवेश के योग्य है या नहीं। यह संकेतक यह बताता है कि कंपनी कितनी प्रभावी तरीके से अपने शेयरधारकों के पैसे का इस्तेमाल कर रही है।
इस ब्लॉग में आप जानेंगे
ROE क्या होता है?
ROE का फुल फॉर्म है Return on Equity, हिंदी में इसे इक्विटी पर प्रतिफल कहा जाता है।
यह संकेतक बताता है कि कंपनी ने अपने शेयरधारकों के निवेश पर कितना लाभ (Profit) अर्जित किया है।
आसान शब्दों में:
अगर आपने किसी कंपनी के शेयर में पैसा लगाया है, तो ROE से आप यह समझ सकते हैं कि उस कंपनी ने आपके पैसे से कितनी कमाई की।
ROE का फॉर्मूला
ROE = Net Income / Shareholder’s Equity
जहाँ
• Net Income = टैक्स और ब्याज काटने के बाद बचा मुनाफा (Profit After Tax)
• Shareholder’s Equity = कंपनी की कुल पूंजी जिसमें शेयरधारकों का पैसा जुड़ा होता है
उदाहरण:
मान लीजिए एक कंपनी का Net Income = ₹10 करोड़
और Shareholder’s Equity = ₹50 करोड़
तो,
ROE = ₹10 करोड़ / ₹50 करोड़ = 0.20 = 20%
इसका मतलब है कि कंपनी ने शेयरधारकों की पूंजी पर 20% रिटर्न कमाया।

ROE क्यों होता है ज़रूरी?
ROE एक निवेशक को यह बताता है कि:
• कंपनी अपने संसाधनों का कितना प्रभावी उपयोग कर रही है
• कंपनी अपने मालिकों (शेयरधारकों) को कितना रिटर्न दे रही है
• कंपनी की प्रबंधन क्षमता कैसी है
उच्च ROE = बेहतर मैनेजमेंट और लाभदायक कंपनी
कम ROE = पूंजी का कम उपयोग, कमजोर लाभप्रदता
ROE कितना अच्छा माना जाता है?
• 20% से ऊपर: बहुत अच्छा (Excellent)
• 15% से 20%: अच्छा (Good)
• 10% से 15%: ठीक-ठाक (Average)
• 10% से कम: कमजोर प्रदर्शन (Poor)

हालाँकि यह सेक्टर पर भी निर्भर करता है। जैसे टेक कंपनियों में ROE ज्यादा होता है जबकि इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों में कम।
Low ROE के कारण
1. कंपनी के पास ज्यादा इक्विटी है पर कम मुनाफा
2. कमजोर मैनेजमेंट
3. प्रॉफिट मार्जिन कम होना
4. ज्यादा कर्ज (Debt) का बोझ
High ROE कब होता है?
1. कंपनी ने कम इक्विटी पर ज्यादा मुनाफा कमाया हो
2. ऑपरेशन कुशलता से चल रहे हों
3. कंपनी ने कर्ज का सही उपयोग किया हो
लेकिन ध्यान दें:
कुछ कंपनियां Debt के ज़रिए ROE को कृत्रिम रूप से बढ़ा सकती हैं। इसलिए केवल ROE देखने से पहले कंपनी का Debt-to-Equity Ratio भी देखें।
ROE कहां से देखें?
आप ROE के आंकड़े निम्न स्रोतों से देख सकते हैं:
• Annual Report (Balance Sheet + Income Statement)
• Financial websites जैसे:
• Moneycontrol
• Screener.in
• Ticker Tape
• Investing.com
• NSE/BSE कंपनी पेज
ROE का विश्लेषण कैसे करें?
- ROE को पिछले 5 वर्षों के ट्रेंड में देखें
लगातार बढ़ता ROE = अच्छा संकेत
- Peer Comparison करें
एक ही इंडस्ट्री की कंपनियों के ROE की तुलना करें
- ROE के साथ ROA और Debt Ratio भी देखें
ताकि आपको पूरे फाइनेंशियल स्ट्रक्चर की जानकारी मिल सके
ROE और Value Investing
Warren Buffett जैसे निवेशक ROE को बहुत महत्व देते हैं। उनका मानना है कि लगातार 5–10 वर्षों तक 15%+ ROE देने वाली कंपनियां लॉन्ग टर्म में मल्टीबैगर बन सकती हैं।
ROE की सीमाएं (Limitations)
1. High Debt से ROE कृत्रिम रूप से बढ़ सकता है
2. Accounting Changes ROE को प्रभावित कर सकते हैं
3. One-Time Profit ROE को अस्थायी रूप से बढ़ा सकता है
4. केवल ROE देखकर निर्णय लेना जोखिमपूर्ण हो सकता है
ROE सुधारने के तरीके
कंपनियां ROE सुधारने के लिए:
• Cost कटौती करती हैं
• Revenue बढ़ाने की कोशिश करती हैं
• Assets की Turnover बढ़ाती हैं
• शेयर Buyback करती हैं
उदाहरण: HDFC Bank का ROE
मान लीजिए:
• Net Profit = ₹50,000 करोड़
• Shareholder’s Equity = ₹2,00,000 करोड़
ROE = 50,000 / 2,00,000 = 0.25 = 25%
यह दर्शाता है कि बैंक ने हर ₹100 की इक्विटी पर ₹25 कमाए हैं — जो कि एक बहुत मजबूत प्रदर्शन है।
निष्कर्ष
ROE एक ऐसा फाइनेंशियल संकेतक है जो कंपनी की मुनाफे की दक्षता को दर्शाता है। यह बताता है कि कंपनी अपने शेयरधारकों के पैसे से कितना फायदा कमा रही है। एक स्मार्ट निवेशक ROE के जरिए यह जान सकता है कि कौन-सी कंपनी अपने संसाधनों का सही उपयोग कर रही है और लॉन्ग टर्म में बेहतर रिटर्न दे सकती है।
याद रखने योग्य बातें:
• ROE = Net Income / Shareholder’s Equity
• ROE 15% से ऊपर हो तो अच्छा संकेत
• ROE को ट्रेंड, सेक्टर और Peer Comparison के साथ देखें
• केवल ROE देखकर निवेश न करें — साथ में Debt Ratio, ROA, Profit Margin आदि को भी देखें
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